तंतुबाई(तांती) समुदाय
तांती शब्द हिंदी/बांग्ला शब्द तांत से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है हथकरघा। इस समुदाय को तंतुबाई समुदाय के नाम से भी जाना जाता है। यह बुनकरों का एक समुदाय है, और दक्षिण एशिया में पाए जाने वाले कई समुदायों में से यह एक है जो पारंपरिक रूप से इस शिल्प से जुड़ा हुआ है।
भौगोलिक स्थिति
तंतुबाई लोग भारत के पूर्वोत्तर भाग में पाए जाते हैं। माना जाता है कि सबसे बड़ी जंनसंख्या इस समुदाय कि झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और उड़ीसा राज्य में है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में और साथ ही बांग्लादेश में भी इस समुदाय के कुछ लोग रहते हैं । ये प्रमुख रुप से महानगरीय क्षेत्रों के बाहर के गांवों में रहते हैं । लेकिन भारत मे तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण शहरी क्षेत्रों में इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा रहता है।
समुदाय की जानकारी
समुदाय फिर से तीन अलग-अलग समूहों में विभाजित किया गया है:
1. आसन तांती
2. शिवकुल तांती
3. पटरा तांती
तंतुबाई समुदाय के लोग तीन अलग-अलग उपजातियों मे समूहों में बंटे होने के बाद भी, वे बिना किसी समस्या के आसानी से एक-दूसरे से शादी कर सकते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार शिवकुल तांतीओं का मानना है कि वे भगवान शिव द्वारा बनाए गए हैं। इसीलिए वे इस अंतर को उजागर करने के लिए शिवकुल का उपयोग करते हैं।
यह समुदाय पिछड़ी जातियों (ओबीसी) का हिस्सा है।
कुलों/गोट्रास और गुस्ती
तंतुबाई समुदाय के लोगों को कई कुलों/गोत्रों में बांटा गया है कुछ प्रमुख गोत्रों के नाम नाग, साल, कच्छप, शानडाल आदि हैं ।
तंतूबाई को कई गुस्ती में भी बांटा गया है (गुस्ती का मतलब वंशानुगत) उनमें से कुछ हैं दस भैया, उर्माखुङी, डंडपाथ, हुंजर, कटराली हुंजर, खीचका आदि ।
मात् भाषा
कुछ तंतूबाई समुदाय के लोग हिंदी की उपभाषा को बोलते हैं, कुछ बंगाली बोलते हैं, दूसरे उड़िया बोलते हैं और कुछ असमिया को अपनी मातृभाषा मानते हैं।
शादी की जानकारी
शादी की रस्मों के संदर्भ में वे कुछ क्षेत्रीय भिन्नताओं को छोड़कर अन्य हिंदुओं के समान ही रस्मों का पालन करते हैं । कुछ झारखंडी तरीकों का पालन करते हैं, कुछ शादी करने के बंगाली रिती रिवाजों का पालन करते हैं, कुछ इसे असमिया तरीके से करते हैं और कुछ शादी के उड़िया तरीकों का पालन करते हैं ।
तंतुबाई समुदाय के लोग एक ही कुलों/गोत्रों मे शादी कर सकते हैं लेकिन एक ही "गुस्ती" मे नही ।
तंतुबाई समुदाय में दहेज या "पौन" दोनों पक्षों (दुल्हन/दूल्हा) द्वारा दिया जा सकता है, यह बात दुल्हन के पिता के निर्णय पर निर्भर करता है ।
और इसके साथ जुड़ा अनुष्ठान है जिसे "पौन बोसा" कहा जाता है।
तंतुबाई समुदाय अंतरजातीय विवाह के लिए बहुत खुला है इसलिए समुदाय में अंतरजातीय जोड़ों की अच्छी खासी संख्या है।
अन्य जानकारी
इस समुदाय से जुड़े लोग दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए हैं और बहुत कम समय ही इस समुदाय के लोगों को आप एक समूह के रूप में रहने हुए देख पयेगें । इस समुदाय के लोग दुनिया भर में फैले अन्य जाति, संस्कृति, धर्म और रंग के लोगों के साथ बहुत आसानी से मिल कर रह सकते हैं ।
इसलिए तंतुबाई समुदाय को किसी भी एक विशेष क्षेत्र से पहचान करना मुश्किल हो जाता है । हालांकि, कुछ गांव ऐसे हैं जहां केवल इस समुदाय से जुड़े लोग ही वहां रहते हैं । ये गांव आसानी से ज्यादातर झारखंड, उड़ीसा, बिहार और असम के ग्रामीण इलाकों में मिल सकते हैं ।
जीवन के बारे में जानकारी
तंतुबाई लोगों ने हमेशा बुनकरों, कपड़ों के प्रदाताओं के रूप में काम किया गया है, यहां तक की बंगाल के प्राचीन इतिहास मे भी । वे अपने बुनाई के महान कौशल पारंगत थे और वे राजसी पोशाक के साथ-साथ अधिक आम रोजमर्रा के कपड़े का उत्पादन करने की क्षमता के लिए जाने जाते थे। कुछ समय पहले , इस समुदाय के लगभग हर घर में एक हथकरघा और कपड़ा बेचने के लिए तैयार रहते थे। वे भी अच्छे किसान थे और पहले के समय में बहुत सारी जमीने रखते थे ।
आज, उनके अधिकांश व्यापार को कारखानों के उत्पाद और आयातित वस्तुओं द्वारा अपने कब्जे में ले लिया गया है । और उनमें से अधिकांश ने गरीबी और खेती में रुचि न होने के कारण अपनी जमीन बेच दी है और नौकरियों की तलाश में गांवों से बाहर निकलकर शहरों में चले गए हैं ।
उनमें से ज्यादातर अशिक्षित या कम शिक्षित है, तो अक्सर उनमें से ज्यादातर कम मजदूरी नौकरियों में या निर्माण स्थलों में या कारखानों में दैनिक मजदूर के रूप में काम करते हैं ।
लेकिन अब वे अपने बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं और नई पीढ़ी को सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में अधिक बेहतर नौकरियां मिल रही हैं । इतना ही नहीं कुछ नृत्य और गायन जैसी कलाओं में उत्कृष्ट हैं ।
धार्मिक मान्यताएं
धार्मिक मान्यताओं के लिहाज से तंतुबाई समुदाय के अधिसंख्य लोग हिंदू हैं। इस समुदाय का एक छोटा सा हिस्सा ऐसा भी है जो खुद को मुसलमानों और ईसाइयों के रूप मे मानता है और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो मुसलमान और ईसाइ धर्मों से संबंधित लोगों को असली तंतुबाई नहीं मानते ।
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